Monday, March 28, 2011

विकास है ?

...विकास है?

बिकते खेत
मिटते गाँव
उगती इमारते
फलते शहर

विकास है?

मिटती लीक
बढती सड़क
मरते मजदुर
तकते हुजूर

विकास है?

भूखे किसान
सरहद पे जवान
शहर में बैठा
मजेमे इंसान

विकास है?

Wednesday, February 3, 2010

चले जा रहे है

काली अँधेरी रात है
अँधेरा ही अँधेरा है
चले जा रहे है
सभी चले जा रहे है
मै भी चला जा रहा हूँ
जहा सभी चले जा रहे है
किसी को मालूम नहीं
कहा जा रहे है
मुझे भी मालूम नहीं
कहा जा रहा हूँ
किसी को मालूम नहीं
फरक अँधेरे और उजज्ले का
काली अँधेरी रात है

हाल देश का

आज हाल देखो देश का
योग्य ठोकर खा रहा
और सिफारशी-पदवी पा रहा।
आज हाल देखो देश का
गुण्डों का राज है
शरीफ आदमी की मौत का
पूरा सामान तैयार है।
आज हाल देखो देश का
इन्सानियत का नाम नहीं
घर में ही चोरी
बहन-बेटी भी नहीं छोड़ी।
आज हाल देखो देश का
लड़ा रहे हैं नेता हमें और
पदवी पा रहे हैं ऐसे ही काम पर।
आज हाल देखकर भी देश का
हम चुप्पी साधे बैठे हैं
कल लुट जाएगा सबकुछ
हम देखते रह जाएंगे।
आज हाल देख देश का
हमें कुछ करना होगा
चुप बैठे रहने से
ये देश बरबाद होगा।

अब ओर नहीं

कहता है मन बस
अब ओर नहीं
हा ओर नहीं
छोड़ दे दुनिया
जीना अब और नहीं
हा ओर नहीं
जी कर क्या करू
अपने लिए तुम्हारे लिए
कहता है मन बस
अब ओर नहीं
शब्दों के है जहा जाल बिछे
अविश्वास ओर धोखा जहा हर जगह दिखे
वहा अब ओर नहीं
हा ओर नहीं
प्रेम जहा बिकता फिरे
इंसानियत जहा सब छोड़ चले
वहा बब्बर कैसे रहे
कहता है मन बस
अब ओर नहीं
हा ओर नहीं

Friday, October 23, 2009

याद आई


आज उनकी याद आई
आंसू भर आए आंखों में
फिर सोच में पड़ गया मैं
हमें भी याद करेंगी संतानें हमारी
आज हम कुछ ऐसा कर रहे हैं
जिससे कायम रहेगी आज़ादी हमारी।
आज तो देश का यह हाल है
ख्याल नहीं किसी को आज़ादी का
आज हम एक ऐसे चोर हैं
जो लूटते हैं अपने ही घर को
आज अपना हाल देख
आंसू भर आए आंखों में
क्षमा चाहता हूं उनसे
जिन्होंने हमे आज़ादी दी।
क्षमा कर सकते हैं मुझको वो
क्षमा कर नहीं सकता मैं खुद को
आज़ादी के नशे में इतना खो गया था मैं
याद नहीं रही आज़ादी की परिभाशा मुझको।

हर क्षण जिंदगी


हर क्षण कहा सुखी जिंदगी
हर क्षण प्यारी नहीं जिंदगी
हर क्षण कहा विश्वास जिंदगी
हर क्षण काश हंसती जिंदगी
हर क्षण नहीं रुलाती जिंदगी
हर क्षण नहीं स्वास्थ्य जिंदगी
चूँकि
सुख दुःख और परिवर्तन ही है जिंदगी